भारत एक विविधता भरा देश है जहाँ अनेकता में एकता का संगम देखने को मिलता है। विभिन्न जातियों, धर्मों, और समुदायों के लोग अपने-अपने त्योहार मनाते हैं, और यह विविधता ही भारत की विशेषता है। भारतीय समाज में त्योहारों का विशेष महत्व है, और इन त्योहारों में से सबसे प्रमुख है दीपावली। दीपावली या दिवाली भारत का एक प्रमुख हिंदू त्योहार है, जिसे पूरे देश में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। दीपों का यह पर्व न केवल उल्लास और खुशियों का प्रतीक है, बल्कि इसे बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में भी मनाया जाता है।
दिवाली का महत्व
दिवाली का त्योहार प्रमुखतः हिंदू धर्म से जुड़ा है, लेकिन इसे सभी धर्मों के लोग समान उत्साह से मनाते हैं। दिवाली का अर्थ है दीपों की पंक्ति, जो अंधकार से प्रकाश की ओर जाने का प्रतीक है। इस पर्व के पीछे अनेक धार्मिक और पौराणिक कहानियाँ हैं। सबसे प्रमुख कथा के अनुसार, भगवान राम ने अपने 14 वर्षों के वनवास और राक्षस राजा रावण का वध करके जब अयोध्या लौटे थे, तब अयोध्यावासियों ने उनके स्वागत के लिए घर-घर दीप जलाए थे। यह दिन कार्तिक मास की अमावस्या का था, और तभी से दीपों के इस पर्व को दिवाली के रूप में मनाया जाता है।
इसके अलावा, दिवाली को मां लक्ष्मी का पूजन का भी पर्व माना जाता है। यह मान्यता है कि दिवाली की रात को मां लक्ष्मी धरती पर आती हैं और अपने भक्तों को धन और समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं। इस कारण लोग अपने घरों को साफ-सुथरा और सजाकर दीपों से रोशन करते हैं ताकि लक्ष्मी जी का स्वागत किया जा सके।
दिवाली का सांस्कृतिक महत्व
भारत में हर धर्म और समुदाय के लोग दिवाली को पूरे जोश और उल्लास से मनाते हैं, जिससे यह सांस्कृतिक और सामाजिक समरसता का प्रतीक बन गया है। यह पर्व न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक धरोहर का भी प्रतीक है। दीपावली पर घर-घर में दीप जलाकर अंधकार को दूर किया जाता है, जिससे यह प्रतीकात्मक रूप में यह संदेश देता है कि जीवन में कितना भी अंधकार क्यों न हो, आशा और सच्चाई का दीप उसे दूर कर सकता है।
दिवाली मनाने की परंपरा
दिवाली को पूरे देश में विभिन्न रीति-रिवाजों और परंपराओं के अनुसार मनाया जाता है। दिवाली के दिन लोग अपने घरों को साफ करते हैं, रंगोली बनाते हैं, दीप जलाते हैं, नए कपड़े पहनते हैं, और मिठाइयों का आदान-प्रदान करते हैं। इसके अलावा, इस दिन पटाखे जलाने की परंपरा भी है। विशेषकर बच्चों में पटाखे फोड़ने का बड़ा उत्साह होता है। हालांकि, आजकल पटाखों से होने वाले प्रदूषण के कारण कई लोग इको-फ्रेंडली दिवाली मनाने पर जोर देते हैं।
दिवाली का पर्व केवल एक दिन तक सीमित नहीं होता है। दिवाली से पहले धनतेरस का पर्व मनाया जाता है, जो नए सामान, खासकर बर्तन और सोने-चांदी की चीजों की खरीदारी का दिन है। इसके बाद नरक चतुर्दशी या छोटी दिवाली का पर्व आता है। मुख्य दिवाली के दिन लक्ष्मी पूजन होता है। अगले दिन गोवर्धन पूजा या अन्नकूट का पर्व मनाया जाता है, जिसमें भगवान कृष्ण की पूजा होती है। अंत में भाई दूज का पर्व आता है, जिसमें बहनें अपने भाई की लंबी उम्र और खुशियों की कामना करती हैं।
वर्तमान समय में दिवाली का बदलता स्वरूप
वर्तमान समय में दिवाली के उत्सव में कुछ बदलाव देखे जा सकते हैं। जहां पहले लोग घर में दीपक जलाकर ही दिवाली मनाते थे, अब आधुनिक बिजली के दीयों, झालरों और पटाखों का उपयोग अधिक बढ़ गया है। बाजार में सजावट और आतिशबाजी का सामान विभिन्न रूपों में उपलब्ध है, और लोग इस पर्व पर अपने घरों को सजाने में बड़ी मात्रा में धन खर्च करते हैं। हालाँकि, इन बदलावों के बावजूद दिवाली का मूल उद्देश्य आज भी वही है - अंधकार पर प्रकाश की विजय और बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक।
दूसरी ओर, आधुनिक समय में दिवाली के दौरान प्रदूषण की समस्या भी बढ़ गई है। पटाखों के कारण वायु प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण का स्तर अत्यधिक बढ़ जाता है। इसके कारण पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, और कई लोग स्वास्थ्य समस्याओं का भी सामना करते हैं। इसीलिए आजकल कई लोग इको-फ्रेंडली दिवाली का समर्थन करते हैं, जिसमें पटाखे कम चलाए जाते हैं और प्राकृतिक सामग्रियों से बनी सजावट का उपयोग किया जाता है।
दिवाली का आर्थिक प्रभाव
दिवाली का पर्व केवल धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से ही महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि इसका भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी बड़ा प्रभाव पड़ता है। इस समय बाजारों में ग्राहकों की भीड़ उमड़ पड़ती है, और विभिन्न प्रकार के उत्पादों की बिक्री बढ़ जाती है। व्यापारी, दुकानदार, और विभिन्न उद्योगों में इस समय बड़े पैमाने पर व्यापार होता है, जिससे आर्थिक गतिविधियों में तेजी आती है। कपड़े, इलेक्ट्रॉनिक्स, सजावट का सामान, मिठाइयां, और गिफ्ट आइटम्स की मांग में बढ़ोतरी होती है।
निष्कर्ष
दिवाली केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि जीवन का प्रतीक है। यह हमें यह सिखाता है कि चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी विपरीत हों, आशा और सकारात्मकता का दीप हमेशा जलाए रखना चाहिए। बुराई पर अच्छाई की जीत और अंधकार पर प्रकाश की विजय का यह पर्व हमें समाज में प्रेम, भाईचारे और एकता का संदेश देता है। पर्यावरण की रक्षा करते हुए और समाज में खुशहाली फैलाते हुए हमें इस पर्व को मनाना चाहिए।
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